स्वयं को बदलकर ही दुनिया को बदलो
सूफी संत बयाज़िद ने अपने बारे में बताते हुए कहा - ‘मैं अपनी जवानी के दिनों में क्रांतिकारी विचारों से ओतप्रोत था। मैं हर समय ईश्वर से यही मांगता कि मुझे इतनी शक्ति दो कि मैं दुनिया बदल सकूँ।’
जैसे-जैसे मैं अधेड़ावस्था में पहुँचा, मैंने यह महसूस किया कि मेरा आधा जीवन यूँ ही व्यर्थ गुजर गया है और मैं एक भी व्यक्ति को नहीं बदल पाया हूँ। तब मैंने अपनी प्रार्थना बदल दी। मैं यह प्रार्थना करने लगा कि हे प्रभु, मुझे इतनी शक्ति दो कि मैं अपने संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति को बदल सकूँ। मैं अपने संपर्क में आने वाले मित्रों और संबंधियों को बदलकर ही संतुष्ट हो जाऊँगा।
अब जबकि मैं वृद्धावस्था में पहुँच गया हूँ और जीवन के कुछ दिन ही शेष हैं, प्रभु से मेरी सिर्फ एक ही विनती है कि मुझे सिर्फ इतनी शक्ति दो कि मैं अपने आप को बदल सकूँ।
यदि मैंने प्रारंभ से ही यह प्रार्थना की होती तो मेरा जीवन व्यर्थ नहीं गया होता।
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सूफी संत बयाज़िद ने अपने बारे में बताते हुए कहा - ‘मैं अपनी जवानी के दिनों में क्रांतिकारी विचारों से ओतप्रोत था। मैं हर समय ईश्वर से यही मांगता कि मुझे इतनी शक्ति दो कि मैं दुनिया बदल सकूँ।’
जैसे-जैसे मैं अधेड़ावस्था में पहुँचा, मैंने यह महसूस किया कि मेरा आधा जीवन यूँ ही व्यर्थ गुजर गया है और मैं एक भी व्यक्ति को नहीं बदल पाया हूँ। तब मैंने अपनी प्रार्थना बदल दी। मैं यह प्रार्थना करने लगा कि हे प्रभु, मुझे इतनी शक्ति दो कि मैं अपने संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति को बदल सकूँ। मैं अपने संपर्क में आने वाले मित्रों और संबंधियों को बदलकर ही संतुष्ट हो जाऊँगा।
अब जबकि मैं वृद्धावस्था में पहुँच गया हूँ और जीवन के कुछ दिन ही शेष हैं, प्रभु से मेरी सिर्फ एक ही विनती है कि मुझे सिर्फ इतनी शक्ति दो कि मैं अपने आप को बदल सकूँ।
यदि मैंने प्रारंभ से ही यह प्रार्थना की होती तो मेरा जीवन व्यर्थ नहीं गया होता।
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